नारी के बिन
वो राधा है वो गीता है वो शक्ति है वो सीता है
हर रूप में रंग अनोखा है सब नारी के बिन रीता है
पर हाय रे पतित जगत के रंग, हर रूप कुरूप करे ये ढंग
माँ भगिनी भाभी बेटी ये, जग इनसे चलना सीखा है
रुनझुन पायल पहने बेटी जब बाहों में इतराती है
कितना कठोर वो सीना हो अपनेपन से पिघलाती है
क्या इंसानो की दुनिया है बेटी लाने से डरते है
मानो पापों को हर लेती और कोई नही वो दुहिता है
हर रूप में रंग अनोखा है सब नारी के बिन रीता है
उम्र के साथ बड़ी होकर जब हाथो का सहारा बनती है
वो बहन ही होती है बन्धु, जो बिन बोले सब सुनती है
ये कैसे भाई बंधु है जो अपनी पराई करते है
ये है तो रंग है खुशियों में, बिन इनके जीवन फीका है
हर रूप में रंग अनोखा है सब नारी के बिन रीता है
जब यौवन कुछ कर जाता है पुरुषत्व अधूरा पाता है
भार्या बनती है नारी ही, जीवन पूरा हो जाता है
हरियाली है वो धरती पर दुख में खुशियों का बादल है
अंधेरा है सब इसके बिन, हाँ घर का वही उजीता है
हर रूप में रंग अनोखा है सब नारी के बिन रीता है
अब और क्या कहूँ क्या है वो हर शब्द तुच्छ मैं पाता हूं
माँ हो जाती है इतनी बड़ी, बस उंगली तक मैं जाता हूं
हाँ आज हूँ मैं कल कोई फिर इस दुनिया को समझायेगा
पापी है हम ये गंगाजल, हां नारी परम पुनिता है
हर रूप में रंग अनोखा है सब नारी के बिन रीता है