नारी की लुटती रहे, क्यूँ कर दिन दिन लाज ? नारी की लुटती रहे, क्यूँ कर दिन दिन लाज ? गडे़ नही क्यूँ शर्म से, पौरुष पुरुष समाज ? ? रमेश शर्मा.