नारी का जीवन
आसान नहीं है यह नारी का जीवन,
पग-पग है ठोकरें और क्रंदन ।
शक्ति रूपेना मां दुर्गा की पूजा सभी करते हैं,
लेकिन अभी भी कुछ घरों में लड़की होने से डरते हैं।
हर महीने के दर्द को सहने की क्षमता ,
पुरुषों के बस में नहीं होता ।
पुत्र होने से जो पीड़ा एक मां सहती है ,
पुत्री होने से वही पीड़ा बढ़ नहीं सकती है।
“अरे तुम्हारी लड़की हुई है!”लोग यह सहानुभूति जताते हैं,
“अगली बार जरूर लड़का होगा!” यह दिलासा दिलाते हैं।
लेकिन मां के लिए हर संतान एक समान है ,
भेदभाव करना तो मातृत्व का अपमान है।
माता- पिता अपनी बेटी के करियर के सपने अगर देखते हैं,
तो उसमें भी कई लोग यह प्रश्न उठाते हैं-
क्या होगा लड़कियों को पढ़ा लिखा कर ?
जाएगी तो दूसरों के घर पराया धन बनकर।
यह समाज के खोखले रीति रिवाज ,
जिसके खिलाफ अभी उठती है कई आवाज ।
कन्यादान और पराया धन जैसे शब्दों को ,
तुरंत इस समाज से बहिष्कृत करो।
लड़कियां कोई वस्तु नहीं जो दान दी जा सके,
या गले का हार नहीं जो पराई धन कहीं जा सके ।
अगर लड़की पढ़ाई को लेकर आगे बढ़ती है,
अपने सपनों की उड़ान भरती है ।
तो कौन है ऐसे समाज के अकर्मण्य लोग ?
जिनको है ऐसी बुरी मानसिकता वाले रोग।
किसी तरह पढ़ाई पूरी हो जाए तो अच्छा लड़का मिलेगा,
आखिर कब तक नारी की शिक्षित होने की सीमा को नापा जाएगा?
वह पढ़ना चाहती है ,आगे बढ़ना चाहती है ,
समाज के समक्ष कुछ कर दिखाना चाहती है ।
तो हे! समाज के दुश्मनों !!
एक नारी के मनोबल को क्यों तोड़ रहे हो?
नारी के बगैर यह सृष्टि ही नहीं होती ,
तब तुम्हारी अस्तित्व ही कहां रहती?
नारी के कोमल मन को आए दिन ठेस पहुंचती है,
अच्छी-अच्छी बातों के जाल में नारी फंसती है।
प्रेम और न जाने कितने वादे करते हैं,
लेकिन यह प्रलोभन तो केवल उसकी योग्यता पर निर्भर करते हैं ।
एक साधारण सी लड़की पर न जाने कितने ज़ुल्म होते हैं,
अगर वह असाधारण बन गई तो वो ही घुटने टेकते हैं ।
यही तो है कलियुग का प्रभाव,
जिसमें मनुष्यता का है अभाव।
प्रेम के नाम पर नफरत का बीज वपन करते हैं ,
जो व्यक्ति पहले मीठा बोलता वही ताना देते हैं ।
नारी कई सीमाओं और बंधनों से घिरी रहती है,
आए दिन अपने पैरों पर खड़ी होने तक चोट सहती है।
घर -दफ्तर दोनों ही संभाल लेती है,
पुरुषों के संग कंधे से कंधा मिलाकर चलती है ।
नारी के पथ कांटों से जरूर सजी होती है,
लेकिन आत्मविश्वासी नारी इन्हें जरूर पार करती है ।
अवश्य उत्तीर्ण होगी वह नारी,
जिसने कभी भी हिम्मत नहीं हारी।
उत्तीर्णा धर