नारी-उत्थान में स्वामी विवेकानन्द की भूमिका
हमारा भारत देश इसलिए महान माना गया है, क्योंकि सर्वप्रथम यहां की धरती पर सबसे अधिक महापुरुषों ने जन्म लिया। दूसरी बात जो नारी के प्रति आदर-सत्कार की भावना यहां की धरती पर है शायद ही वह किसी देश मे हो, परन्तु जब नारी को पुरुषों के मुकाबले कम समझा जाता है तो बड़ा आश्चर्य होता है कि एक तरफ तो हम कल्पना चावला, इंदिरा गांधी की मिसाल देते हैं और दूसरी तरफ कहते हैं कि नारी वो आयाम स्थापित नहीं कर सकती जिसमे पुरुष कामयाब हो सकते हैं।
स्वामी विवेकानन्द साहित्य को अगर गौर से पढ़ें तो पता चलता है कि वे उस समय जब खासकर भारत मे नारी-शिक्षा का अधिक बोलबाला नहीं था, तब उन्होंने नारी-शिक्षा व नारी-उत्थान के सम्बंध में ऐसे कितने व्याख्यान दिए जिन्हें सुनकर भारतीय नारी स्वयं को गौरवान्वित महसूस करती, लेकिन आज 21वीं सदी की बात करें तो काफी स्थानों के सर्वेक्षण व अध्धयन में सामने आता है कि नारी आज भी चारदीवारी में रोजमर्रा के कार्यों में जकड़ी हुई है, क्योंकि वहां पुरुष ही नही चाहते कि नारी आगे बढे, आखिर ऐसा क्यों….?
स्वामी विवेकानन्दजी से किसी ने नारी-उत्थान के सम्बन्ध में जब प्रश्न किया तो उन्होंने कहा, ”भारत मे नारी तिरस्कार और जाति-भेद की समस्याएं अहम हैं, जिनके कारण नारी अशिक्षित होकर घर मे कैद है जबकि पाश्चात्य में ऐसा नहीं है, वहां नारी पुरुषों के बराबर ही नहीं बल्कि उनसे भी दो कदम आगे चलती हैं।
आगे फिर कहते हैं, ”जहां नारी का सम्मान होता है वहां देवता भी प्रसन्न होते हैं और जहां उनका तिरस्कार होता है वहां सभी प्रयत्न धरे रह जाते हैं।”
नारी-उत्थान, नारी-सम्मान, नारी-शिक्षा व नारी-पूजा में अथाह सहयोग दें, क्योंकि नारी से ही हमारी शक्ति है।
बड़े शहरों व सम्पन्न कस्बों से थोड़ा बाहर निकलकर देखें तो आज भी स्वामी विवेकानन्दजी की बात सौ फीसदी सत्य साबित होती है, जहां की नारियों का अपने दायरे से बाहर निकलना मात्र स्वप्न जैसा है।
मनोज अरोड़ा
लेखक, सम्पादक व समीक्षक
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