नारी इक जीवन गाथा
नारी शब्द में बोध छिपा है हमारी जीवन गाथा का
जीवन को हंस-हंस कर जीना, हर गम को हंसकर पीना
कदम-कदम पर कांटे आये, फूलों सा श्रृंगार करे हम
आंचल सेअपने दुख को ढ़ाके, उसी से औरों पर खुशीयां लहराये
नारी शब्द में बोध छिपा है, हमारी जीवन गाथा का
जीवन की पहली आहट से कन्यारत्न कहलाते हूँ
राखी के डोरो को लेकर भाईयो की बहना बन जाती हूँ
यौवन के आहट से मै किसी की प्रेयसी, प्रियतमा कहलाती हूँ
कहलाने में क्या रखा है, फिर भी हर वियोग को सहकर सबकी लाज बचाती हूँ।
लालिमा सी चमक मांगो में लेकर रातों-रात अपनों से परायी हो जाती हूँ
फिर भी आह नही करती सबको अपनाती हूँ। 2।
भाई-बहना का रुप बदलकर नखरों से चिढ़ाते मुझकों
माँ- बाप के रूप में सास-ससुर मिल जाते है मुझकों
साजन की सजनी बनकर अर्धांगिनी- वामांगी कहलाती हूँ
अपने रुप-श्रृगांर से उनको इठलाती ललचावै
एक दिन मै छोटे से पुष्प की माँ बन ममता बरसाती हूँ
उनके पदचाप पर जीवन बारू, उनकी एक आह पर अपना सब दर्द भूल जाती हूँ
तब जाकर मै नारी कहलाती हूँ, तब जाकर नारी कहलाती हूँ
नारी शब्द में बोध छिपा है हमारी जीवन गाथा का