#नारी अब अबलापन छोड़ो(#वीर/आल्हा)
नारी अब अबलापन छोड़ो, सबला बनकर भरो हुँकार।
जो भी देखे तुच्छ नयन से, रणचंडी का लो अवतार।।
चारों ओर दरिंदे बैठे, लाचारी पर करने वार।
बिजली बनके टूट पड़ो तुम, खंडित करो धरा का भार।।
पीर पराई कौन समझता, अपनी ही करते जयकार।
अपनी रक्षा ख़ुद करनी है, नारी बलशाली साकार।।
शासन सत्ता मौन पड़े हैं, बिके हुए हैं सब अख़बार।
देवी दुर्गा-सी बन जाना, दुश्मन का करने संहार।।
श्रद्धा प्रेम प्यार की मूरत, रिश्ते-नातों का आधार।
रक्षा इनकी करो सदा ही, पर सहना मत अत्याचार।।
जब लोग दबाना चाहेंगे, रहो विरोधी हो तैयार।
फूलों बदले फूल चढ़ाना, शूलों को शूलों का हार।।
(C) आर.एस.’प्रीतम’