*नारियों को आजकल, खुद से कमाना आ गया (हिंदी गजल/ गीतिका)*
नारियों को आजकल, खुद से कमाना आ गया (हिंदी गजल/ गीतिका)
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नारियों को आजकल, खुद से कमाना आ गया
स्वाबलंबी बन गई हैं, सिर उठाना आ गया
2
घर-गृहस्थी इस समय, दो की कमाई पर टिकी
अर्धनारीश्वर को ऐसे, मुस्कुराना आ गया
3
नारियॉं घर में हैं तो, नारियॉं बाहर भी हैं
मेल दोनों कार्य में, इनको मिलाना आ गया
4
दफ्तर से लौटी पत्नियॉं, हारी-थकी जब भी
चाय पतिदेवों को तब, इनको पिलाना आ गया
5
सभ्य शिक्षित हैं सुसंस्कृत, आज की यह नारियॉं
अब विचार-विमर्श सब, इन को बढ़ाना आ गया
6
पाल सकती हैंं स्वयं, परिवार अपना शान से
नारियों को जेब, कुर्ते में लगाना आ गया
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451