नाराजगी
मुक्तक
01
नाराजगी सदा रहती परिवार के लोगों में।
मन में लगती ठेस कभी आपस के व्यवहारो में।
विचार का मेल न होना मतभेद भी होता कारण।
नाराजगी स्थायी कहाँ रिश्तों अरु संबंधों में ।
02
हो जाता मनमुटाव तो मिलकर ही सुलझा लेते।
आपस की हो कहासुनी आपस में हल कर लेते ।
प्रेम भाव मीठी वाणी उपाय बहुत ही नेक है ।
नाराजगी दूर होती शंकाएँ यदि मिटा देते
03
क्यों होते नाराज कन्हैया राधा के व्यवहार से ।
प्रेम भाव की यही परीक्षा राधा चाहे जान से ।।
हँसी ठिठोली में कह देती मुरली क्यों चिडाती।
राधा राधा गाते रहती अधरन बैठी शान से।।
04
काला कान्हा गौरी राधा फिर भी चाहे प्यार से ।
जन्म जन्म संबंध निभाने जीवन सौंपा ध्यान से ।
इक दूजे हित जीना मरना राधा की यह साधना।
छोड़ो कान्हा नाराजी अब राधा बोलो प्यार से ।।
राजेश कौरव सुमित्र
राजेश कौरव सुमित्र