नानी के साथ
नानी के साथ मुझे नानी के साथ घूमना पसंद है, मेरे कदम उसके जैसे आहिस्ते पड़ते हैं। वह कहती है अब जल्दी मत करो। पर जब मै दौड़ती हूं तो वो मेरे साथ दौड़ती भी है। वो मुझे आसपास की चीजे दिखती है । और वो क्या है मुझे समझती भी है। चलते चलते मै रुक जाती हूं तो वो मेरे आंखो में देखती है। फिर मै भी उसकी आंखो में देखती हूं। उसकी आँखों में मुझे मेरी फिक्र दिखाई देती है। और बहोत सारा प्यारा भी दिखाई देता है। उसकी आंखो में जब ओस की आधी छिपी हुई बूंदें दिखती है तो उसमें छिपी हुई मां तेरी तस्वीर मुझे दिखाई देती है। कभी कभी मुझे उसकी सूरत तेरे जैसी दिखाई पड़ती है। वह हमेशा मुझे अपना समय देती है। और मेरे साथ चलती है। तुम भी उसके जैसा मेरे साथ चलो न मां। ❤ ठाकुर छतवाणी ( श्री मित्रा जसोदा पुत्र )