“कितनी नादान है दिल”
कितनी नादान है दिल, है मासूम भी
लौटकर तेरे गलियों में फिर आ गए
यादों के धूप में छांव कहीं दूर है
हम तुम्हें चाहकर भी नहीं पायेंगे
दिल के तन्हाइयों में बसी हो तुम्हीं
दूर एक पल कहीं चैन नहीं पायेंगे
थी जो नजदीकियां, हम भुला ना सके
तेरे घर का पता पूछकर आ गए
कितना नादान है दिल मासूम भी———-1
वक्त के हाथ में है मुकम्मल जहां
संग जीने मरने की कसमें निभाते नहीं
जीवन तो दुःख सुख का सहज भोग है
संघ आते नहीं, संग जाते नहीं
चल रहे दो कदम, भी उसी के लिए
हर कठिन राह पर हम तो लाए गए
कितना नादान है दिल मासूम भी —————2
राकेश चौरसिया