नादानी
” नादानी ”
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याद है मुझे !
वो नादान……..
नटखट बचपन |
कितना आजाद था ?
कितना मगरूर था ?
ना कोई कर्तव्य !
ना कोई जिम्मेदारी !
वो मस्ती का सलीका !
वो जीने का तरीका !
नदी में तैरना !
पहाडो़ पर चढ़ना !
झरनों में नहाना !
पेड़ों पर चढ़ना !
अधिकतम खेलना
न्यूनतम पढ़ना ||
सदा रहता था……..
मस्तमौला !
हर्षित-पुलकित
ना कोई फिक्र…..
ना कोई चिंता !!
तभी तो याद आती है
नादानी मेरी |
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— डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”