नादानी
ये आसमान में, अकेला, टँगा हुआ सूरज….
युगों से किसके लिए ख़ुद को जलाता होगा?
कोई तो होगा क़ायनात में वो संग – ए – दिल
देखता होगा तमाशा, तमाशबीनों सा
ये सिलसिला कोई नया नहीं, बहुत पुराना है,
दिलों की बात जुदा है, अलग फ़साना है…
आशिकी के तमाम किस्सों में,
कोई नादान है, पर कोई बहुत दाना है
कोई तो ख़ार हो जाता है बस नादानी में
कोई देख कर उसे खूब मुस्कराता है
ये दिमाग़ का नहीं दिल का मामला है
कोई मिट जाता है मोहब्बत के लिए
कोई सिर्फ़ उसका मज़ाक बनाता है
किसी लिए खेल है, किसी के लिये जिंदगी
कोई सच्चा है, प्यार उसके लिए है बंदगी
फिर भी इस ज़माने में बेचारा मात खाता है
प्यार में मरता है वो, कोई मय्यत में नहीं जाता है।