नादानी
नादान थी मैं भी जब मेरी
माँ जिंदा थी
न जाने कहाँ और कब
खो गए मेरे वो मधुर लम्हे
जब हर पल थी नादान सी मस्ती
क्यो अब वही मैं
समझदार सी हो गई हूं
न जाने कब और कैसे मैं बड़ी हो गई हूँ
नादान थी मैं भी जब मेरी
माँ जिंदा थी
अब तो जिंदगी जैसे मेरे मजे ले रही हैं
क्यो मेरी माँ बिन मेरी नादानियों को
ठग सी रही हैं ,मैं लूटी सी हो रही हूं
अब मेरी नादानियों को गलती क्यो
बोल दिया जाता हैं न जाने क्यो
अब समझदार सी हो गई हूँ मैं
नादान थी मैं भी जब मेरी
माँ जिंदा थी
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद