नात ए पाक
नात ए पाक
तमन्ना हाज़िरी की एक मुद्दत से है सीने में
बुला लीजै मेरे आक़ा मुझे भी अब मदीने में।।
बनाते है ग़ुलामों का मुक़द्दर भी मेरे आक़ा।
ग़ुलामी चाहिए उनकी तब आये लुत्फ़ जीने में।।
मला जिसने महकती हैं अभी तक उसकी नस्लें भी।
अता की रब ने वो ख़ुशबू मुहम्मद के पसीने में।।
सुनाऊंगा मैं हाले दिल शहे-आलम के रौज़े पर।
मुझे भी हाजियों दे दो जगह अपने सफीने में।।
करम फ़रमाइये आक़ा “अनीसे” ग़मज़दा पर भी।
ज़ियारत गुम्बदे ख़ज़रा की हो हज के महीने में।।
—अनीस शाह”अनीस” (8319681285)