नाटक
नाटक
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यह कैसी लाचारी है
धर्मनिरपेक्षता पर
कट्टरवाद भारी है,
हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई
आपस ने मिलते कहाँ भाई?
अब तो एक दूजे से डर लग रहा है,
कब किसका
कट्टरपन जाग जाये
जिनके साथ सुखदुःख बाँटते रहे,
उन्हीं को मार काटकर
गटर में डाल आयें
उनकी माँ बहन बेटी की
इज्ज़त कब नोच खायें?
उनके घर लूट लें,आग लगा दें,
कि कब हुआ,
कैसे हुआ,
किसने किया?
पता ही न चल पाये।
कब एक दूसरे के
सुखदुःख में काम आयें
जान की बाजी भी लगा जायें,
कब उसी के जानी दुश्मन बन जायें
खुद भी नहीं जान पायें।
आज देश की
एकता अखंडता
आये दिन लहूलुहान हो रही है,
सर्व धर्म सम्भाव हर पल
खतरे में सांस ले पा रही है।
विखंडित मानसिकता ने
जाने क्या कर डाला,
भाई भाई को ही
आपस में दुश्मन बना डाला।
राष्ट्र दो कदम आगे
एक कदम पीछे चल रहा है,
आपसी भाईचारे के नाटक पर
सिर धुन रहा है।
✍सुधीर श्रीवास्तव