नही लिख पाता हूं
सुनो…
नही लिख पाता हूं मैं अब वैसा
जैसा मैं लिखना चाहता हूं…
कुछ जज्बात तो मचलते है जहन में मेरे
कुछ उनकी यादों का दौर भी चलता है
ख्याल तो आ जाता है मुझे उनके इश्क का
क्यों… मैं उसे अब अपने शब्दों में पिरो नही पाता हूं
सुनो नही लिख पाता हूं मैं अब वैसा
जैसा मैं लिखना चाहता हूं….
ना जाने मेरे साथ क्या हो रहा है
मेरे शब्दों का कारवां अब कहीं खो रहा है
मेरा लेखन भी औरो की तरह
अब जाने दम तोड रहा है
क्यों… मैं उन्हें अब अल्फाजों में बांध नही पाता हूं
सुनो नही लिख पाता हूं मैं अब वैसा
जैसा मैं लिखना चाहता हूं
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” यूं ही समाया नही है अंधेरा, मेरे सिरहाने पर
क्यूंकि मेरे सूरज और चांद, अब निकलते नही है…
हम भी जाहिर कर सकते है गमों को, कैफियत से
मगर सभी दर्द भी पन्नो पर उतरते नहीं है…”