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14 Jun 2017 · 1 min read

नही चाहता

सब कुछ त्याग कर मैं पत्थर नही बनाना चाहता
इंसान ही ठीक हूँ मैं ईश्वर नही बनाना चाहता

रिस्तों को निभाते निभाते मैं बर्बाद हो गया हूँ
अब रिस्तों के लिये खुद को मिटाना नही चाहता

उनको यादों करके मैं शामो सहर परेशान रहा हूँ
अब जमाने की खातिर उन्हें भुला लूटना नही चाहता

हर किसी शख्स से मैं सदा प्रेम करता रहा हूँ
लेकिन उनकी खातिर मैं उसे भुलाना नही चाहता

अगर उनसे रिस्ता न तोड़ पाना मेरी खुदगर्जी है
तो खुदगर्ज ही ठीक हूँ परोपकारी नही बनाना चाहता

मुझे किसी के दिल मे मोहबत का दीपक बन जलना है
मैं किसी आरती के थाल में नही सजना चाहता

श्राद्ध विश्वास त्याग और समर्पण सब बेकार की बात है
ऋषभ इन चोचलों में पड़ कर उसे खोना नही चाहता

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