*नहीं हाथ में भाग्य मनुज के, किंतु कर्म-अधिकार है (गीत)*
नहीं हाथ में भाग्य मनुज के, किंतु कर्म-अधिकार है (गीत)
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नहीं हाथ में भाग्य मनुज के, किंतु कर्म-अधिकार है
1)
किसने रोका तुम्हें मनुज है, पावन मन करने से
निर्मल कार्यों से धरती के, कण-कण को भरने से
कदम बढ़ाओ जितने चाहो, नील-गगन विस्तार है
2)
मिले तुम्हें फल चाहे जैसा, पर हिम्मत मत हारो
मन में है अवसाद अगर तो, हॅंस-हॅंस उसको मारो
आगे बढ़ो अभय को लेकर, तुम में बल-भंडार है
3)
भाग्य सिर्फ दे पाता है फल, पिछले जन्मों वाला
कर्मों का परिणाम मिल रहा, सबको उजला-काला
चलो स्वर्ग से बढ़कर पाओ, खुला मुक्ति का द्वार है
नहीं हाथ में भाग्य मनुज के, किंतु कर्म-अधिकार है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451