नहीं समझता पुत्र पिता माता की अपने पीर जमाना बदल गया है।
गीत
नहीं समझता पुत्र पिता माता की अपने पीर जमाना बदल गया है।
पशु पक्षी हैं बेघर तड़पें पीने को भी नीर जमाना बदल
गया है।
जिसको कुर्सी मिल जाती है फूले नहीं समाते।
जनता के दुख दर्द उन्हें फिर कभी नज़र न आते।
झूठे वादों के बस लॉलीपॉप उन्हें दिखलाते।
इसी आश में उनके दिन औ रात गुजरते जाते।
नेता अफसर दोनों मिलकर उड़ा रहे खीर,
…….. जमाना बदल गया है। (1)
मिल जाती थी कभी नौकरी अब मिलती आशाएं।
कहीं लीक पेपर हो जाते, अगणित हैं बाधाएं।
घर के लोग पाल बैठे हैं कैसे-कैसे सपने।
घोर निराश में डूबे हैं रिश्ते नाते जितने।
सोच रहा है निशदिन रांझा कब मिलती है हीर,
………जमाना बदल गया है।(2)
बैठे से बेगार भली कुछ धंधा करे कमाएं।
नहीं सरल है ये करना कैसे परिवार चलाएं।
मंचों के आकर्षण भी कवियों के बहुत लुभाते।
सीख रहे हैं गीत ग़ज़ल मुक्तक जो मन को भाते।
सूर कबीर निराला ग़ालिब बन जाएंगे मीर,
…….. जमाना बदल गया है। (3)
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी