नहीं मिली खुशियाँ
थी बहुत खुश
वो
फैरती बार बार
हाथ पेट पर
वो
शरारते उसकी
याद कर कर
मुस्कुरा उठती थी
वो
गूंज उठेगी
अब तो
किलकारी
घर में
होगी दुनियां की
सबसे खुशकिस्मत
वो
चोरी छिपे
होते काम
सब
कर दिया
सब धोखे से
अब था
शिशु की
किलकारी
उसका सपना
टूटे गयी थी
तन मन से
वो
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल