नहीं, बिल्कुल नहीं
नहीं, बिल्कुल नहीं,
मैं सुनना पसंद नहीं करता,
तेरी बुराई किसी जुबां से,
और देखना नहीं चाहता,
तुम्हें किसी और की बाँहों में,
क्यों हूँ मैं तुम्हारा दीवाना,
और तुम्हारे प्रति इतना आसक्त।
मैं देखता नहीं हूँ कभी ,
किसी और का ख्वाब,
अपनी जिंदगी और ख्वाब में,
और मेरा यह इतना संघर्ष,
किसके लिए है आज,
जमा कर रहा हूँ ये खुशियाँ,
तेरे सिवा और किसी के लिए नहीं है।
मैं तुमसे ईर्ष्या नहीं,
प्रेम करता हूँ,
मैं तुमको धमकी नहीं,
सलाह देता हूँ,
मैं तुम्हारी बर्बादी नहीं,
खुशहाली चाहता हूँ ,
और नहीं चाहता हूँ,
मैं कभी तुम्हारी बदनामी।
सींच रहा हूँ मैं अपने लहू से,
यह तुम्हारा चमन,
तुमको पवित्र मानकर,
और करता हूँ दुहा हमेशा,
तुम्हारे आबाद रहने की,
नहीं चाहता मैं कभी,
किसी और का साथ।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला-बारां(राजस्थान)