*नहीं बता पा रहे हैं हम *
अपना दर्द किसी को नहीं बता पा रहे हैं हम।
यों ही सहने का हुँनर नहीं बता पा रहे हैं हम ।।
कभी बारहबी में हुआ था दर्द ठूंठ का पाँव में
मग़र चुभी फांस का दर्द नहीं बता पा रहे हैं हम।।
बुरी तरह से करखता है,हमारे सीने में रह रह के
आँखों में आंसू सुख गये, नहीं बता पा रहे हैं हम।।
कहीँ मरहम भी नहीं मिलता,लगाके चैन पाऊं
सिकाई करी थी रात वो ,नहीं बता पा रहे हैं हम।।
नींद कहाँ पहाड़ सी दिखती है वो अब छाया हमें
दवा देती है यकायक , वो नहीं बता पा रहे हैं हम।।
जन्म से चला आ रहा है “साहब”चिपका हुआ ये
कब होगी विदाई की घड़ी,नहीं बता पा रहे हैं हम।।