नहीं प्यार दिखता किसी भी बशर में।
ग़ज़ल
122…..122……122…..122
नहीं प्यार दिखता किसी भी बशर में।
हुए पीत पत्ते हैं जैसे शज़र में।
है तकदीर में सर्वनाशी ही यारो,
हुआ कोई भेदी जो अपने ही घर में।
हुई गैस महगी जुगत तो बताओ।
सिलेंडर तो बांटे हैं गावों शहर में।
है इंसान जितना खतरनाक यारो,
नहीं इतना खतरा किसी भी जहर में।
सभी ने करोना कहर खूब झेला,
अभी और खतरे हैं चौथी लहर में।
सुखद छांव शीतल हवा शुद्ध पानी,
नहीं दिख रहा है किसी भी नगर में।
रहें स्वस्थ सुंदर सभी लोग या रब,
रहे प्यार ही प्यार दिल जां जिगर में।
……. ✍️प्रेमी