नहीं अग्नि जल और पवन हूं
नहीं अग्नि जल और पवन हूं
नहीं धरा न नीलगगन हूं
न विचलित, एकाग्र ही मन हूं
नहीं बुद्धि अहंकार स्मृति
न शरीर, नाक कान आंख जिभ्या
मैं तो सच चित आनंद घन हूं
चैतन्यरुप सदा शिव हूं
नहीं अग्नि जल और पवन हूं,
नहीं धरा न नील गगन हूं
निराकार निर्विकार गुणातीत
निर्विकल्प समता स्थित,
मैं चेतन आनंद शिव हूं
चैतन्य स्वरूप सदा शिव हूं
नहीं जन्म न मरण
न मुक्ति न बंधन
न मुख वाणी भोजन
नहीं प्राण न पंचकोश
न लोभ मोह न राग द़ेष
धर्म अर्थ न काम मोक्ष
सुख दुख न ही पुण्य पाप
जरा मृत्यु न जातिभेद
मंत्र तीर्थ न यज्ञ वेद
माता पिता न गुरु शिष्य
संदेह नहीं संकल्प विकल्प
सकल चराचर व्याप्त इंद्रिय गत
समता चैतन्य आनंद स्वरूप
सत चित आनंद सदा शिव हूं
नहीं अग्नि जल और पवन हूं
नहीं धरा न नीलगगन हूं
सुरेश कुमार चतुर्वेदी