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30 Apr 2022 · 1 min read

नस्ल कागज सी कोरी

*** नस्ल काग़ज़ सी कोरी ***
************************

लुप्त हो गई माँ की लोरी है,
नस्ल आज काग़ज़ सी कोरी है।

समझ से हुआ बाहर मानव मन,
सख़्त लोग पर दिल में मोरी है।

रहे भागते हैं अपनी जड़ से,
अक्ल खोखली तन की गौरी है।

लगे लूटने जब से औरों को,
असल मे हुई खुद की चोरी है।

वहम पालता मन मे मनसीरत,
बग़ल में हुई सीनाजोरी है।
***********************
सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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