नसीब
नसीब
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जब भी देखता हूँ आईना
वक़्त से पहले
बालों से गुजरती सफ़ेदी
और आईना पूछने लगते हैं
मुझसे मेरा गुनाह और तन्हाई
वक़्त के नाख़ून
फिर से कुरेदने लगते हैं
मेरी यादों को
मेरे जेहन में ताजा होती यादें
लहूलुहान हो जाती हैं
नहीं समझ पाया
लंबे वक़्त तक
साथ रहने पर भी
हाले दिल बयाँ करती
उसकी आँखें
मोहब्बत के इज़हार के
अन्दाज और ख्वाहिशों को
उससे हिज्र के बाद जाना
अपनी नासमझी को
बावजूद नसीब में लिखी
तन्हाई के मेरे
तन्हा नहीं हूँ मैं
उजाले में साया और
अँधेरे में खामोशी
साथ रहते हैं मेरे……………………