नसीब
जतन कितने भी कर ले तू , मिलेगा उतना जितना है तेरे नसीब में,
ईमान से ले या फरेब से ले, मिलेगा उतना जितना है तेरे नसीब में,
कर्म की राह चलकर अपने “ नसीब “ को सँवारते गए,
“इंसानियत की रोशनी” से जग में खुशियाँ बाँटते गए,
“प्यार के दीपक” से तकदीर की लकीरों को बदलते गए,
“विश्वास का दामन ” पकड़कर “मझधार” पार करते गए ,
जतन कितने भी कर ले तू , मिलेगा उतना जितना है तेरे नसीब में,
प्यार से ले ले या दिलों को तोड़कर, मिलेगा जितना है तेरे नसीब में,
ऊंचाई और ऊंचाई चढ़ते हुए , वो किस पर्वत पर आ गए ?
“खाई ” के सिवा कुछ नहीं दिखता, उस मुकाम पर आ गए,
भंवर के जाल में उलझकर जीवन के किस मोड़ पर आ गए?
“राज” अब “नय्या” को कौन संभाले ?उस अंजाम पर आ गए,
जतन कितने भी कर ले तू , मिलेगा उतना जितना है तेरे नसीब में,
मिलावट का जहर बेचकर ले ले तू , मिलेगा जितना है तेरे नसीब में,
टूटे पत्ते की तरह तू भी इस मिट्टी में घुलमिल जायेगा,
चाहकर भी तू कभी पेड़ की डाल से जुड़ नहीं पायेगा,
नाम, शान, ज्ञान का घरोंदा सब कुछ यहीं छूट जायेगा ,
“विश्वास का पौधा ही तुझे “मालिक” से रूबरू कराएगा,
जतन कितने भी कर ले तू , मिलेगा उतना जितना है तेरे नसीब में,
नफरत का कफ़न बेचकर ले ले तू , मिलेगा जितना है तेरे नसीब में,
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देशराज “राज”