नसीब में था अकेलापन,
नसीब में था अकेलापन,
साथ थे तुम्हारे तो, भूल गए थे…. (नसीब)
चुभ जाती है वह बातें जो हम कहते भी नहीं,
जो हम कहते हैं वह वो सुनते भी नहीं…
चुप रहने पर भी , दोष हम पर मढ़ते हैं,
जो अपनों से दूर करें, उन्हें वह अपना समझते हैं…
बिछड़ने का दर्द है फिर भी, मन को समझ लेते हैं,
अकेले आए थे दुनिया में, अकेले ही जी लेते हैं….
उमेंद्र कुमार