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2 Jun 2018 · 1 min read

–नशा–उपेन्द्रवज्रा छंद

उपेन्द्रवज्रा छंद की परिभाषा और कविता–
उपेन्द्रवज्रा छंद
——————-यह एक वर्णिक छंद है।इसमें ग्यारह अक्षर होते हैं।इसके प्रत्येक चरण में जगण,तगण,जगण और दो गुरू होते हैं(ISI SSI ISI SS)।

जगण=ISI
तगण=SSI
गुरू =SS

उपेन्द्रवज्रा छंद की कविता “नशा”
121-221-121-22
नशा निशा है अँधकार जैसा,
लगा न तू रे लत प्यार जैसा।
मिटा रहेगा तन मार जैसा,
घटा-घटा-सा रण हार जैसा।

इसी बिना जी लग ना सकेगा,
इसी बिना सो जग ना सकेगा।
इसी बिना तू रह ना सकेगा,
इसी बिना तू कह ना सकेगा।

सभी तुझे ठोकर मार देंगे,
सभी तुझे खोकर हार देंगे।
मज़ा सज़ा होकर जान लेगा,
समाज धिक्कार करार देंगे।

गुलाम-सी जान बने नकारा,
हयात यूँ व्यर्थ लगे पिटारा।
नशा तजो नाज़ बने इशारा,
ख़ुशी भरा जीवन देख सारा।

सभी मिलेंगे जन प्यार से रे,
सभी खिलेंगे जन हार से रे।
कभी न होंगे मन दूर जानो,
क़रीब होंगे बस यार से रे।

राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
———————————–

Language: Hindi
524 Views
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