* नव जागरण *
** नवगीत **
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संगीत का अब प्रकृति में
हो रहा नव जागरण।
शीत से कुछ थम गई थी,
और मद्धम हो गई थी।
किन्तु वासंती लहर का,
हो रहा उनमें स्फुरण।
चहचहाना पाखियोँ का,
मोहता है मन सभी का।
साथ प्रकृति में हुआ,
नव कोंपलों का अंकुरण।
खेत में खलिहान में,
हर जीव में इन्सान में।
एक नूतन आस का,
हो रहा है अवतरण।
इन्द्रधनुषी रंग बिखरे,
खुशबुओं से पुष्प निखरे।
भर रही ऊर्जा हृदय में,
स्वर्णमय रवि की किरण।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य।