नवीन वर्ष (पञ्चचामर छन्द)
नवीन वर्ष को लिए, नया प्रभात आ गया
प्रभा सुनीति की दिखी, विराट हर्ष छा गया
विचार रूढ़ त्याग के, जगी नवीन चेतना
प्रसार सौख्य का करो, रहे कहीं न वेदना ।।1।।
मिटे कि अंधकार ये, मशाल प्यार की जले
न क्लेश हो न द्वेष हो, हरेक से मिलो गले
प्रबुद्ध-बुद्ध हों सभी, न हो सुषुप्त भावना
हँसी खुशी रहें सदा, यही ‘सुरेन्द्र’ कामना।।2।।
न लक्ष्य न्यून हो कभी, सही दिशा प्रमाण हो.
न पाँव सत्य से डिगें, अधोमुखी न प्राण हो
विवेकशील आप हो, विकारहीनता रहे
सुरीति नीति ज्ञान की, कभी न दीनता रहे।।3।।
नाथ सोनांचली