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29 Aug 2024 · 1 min read

“नवांकुरो की पुकार “

सादर नमन 🙏💐 प्रस्तुत है स्वरचित एवं मौलिक कविता “नवांकुरों की पुकार ” जिसमें लेखन के क्षेत्र में कैसे नये लेखकों को संघर्ष करना पड़ता है |प्रस्तुत कविता में नवांकुरो यानि नये लेखकों को आने वाली कठिनाई और उसका सामना करने की सलाह कविता में लेखक दे रहा है ताकि उनका उत्साहवर्धन हो सके |कविता सभी नये लेखकों पीड़ा को व्यक्त करने हेतु लिखी गयी है |

“नवांकुरों की पुकार”
लेखनी जब उठाई मैंने, जानी जीवन की सच्चाई,
कितना कठिन है यह सफर, हर कदम पर है कठिनाई।
मौलिकता की जो बात करे, वही सच्चा लेखक कहलाए,
वरना यहाँ तुकबंदी में, सबका मन बस उलझ जाए।

मंचों पर देखो कवि, बस अपनी धुन में गाते हैं,
नए अंकुरों की पुकार, कोई सुनने नहीं आता है।
शिष्य बनाने का जो हुनर था, अब वो लुप्त हो चला,
शायद डरते हैं इस बात से, कहीं उनकी लौ ना बुझ जाए।
पर मैं नहीं रुकूँगा, अपने लेखन की धार से,
मिटा दूँगा वह धारणा, जो उनके मन में बैठी है।
लेखन में नए अध्याय की, मैं शुरुआत करूँगा,
इस राह पर चलकर, मैं अपना नाम अमर करूँगा।

जो नहीं देखता नवांकुरों की तरफ, वो क्या जाने,
किसी नए दिये की लौ में, उसकी रौशनी कितनी बढ़ती है।
भरोसा रखो अपने आप पर, डर की कोई बात नहीं,
जगमगाने दो नई किरणों को, यही सच्ची बात सही।

©ठाकुर प्रतापसिंह ‘राणाजी’
सनावद (मध्यप्रदेश )

Language: Hindi
83 Views
Books from ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
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