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26 Jan 2024 · 1 min read

नववर्ष में

नववर्ष में
दिशाओं में किरणें ही फैले
न कि अंधेरे छितराऍं।
संध्या का रूपहला यौवन
अभिशाप नहीं बन पाए।
नववर्ष में
जर्जर न हो सभ्यता
चरण हरगिज न डगमगाए।
आहत न हो मानवता
ऐसा स्नेह दीप जलाएं।
नववर्ष में
धुंधलकों से मानव
मुक्त हो जाए।
खत्म हो गहन तिमिर
रोशनी नाचे उजाले गाऍं।
नववर्ष में
शक्ति की फिर न लें
राम अग्नि परीक्षाऍं।
कोई धर्मराज
दाव पर द्रुपदा को न लगाएँ।
नववर्ष में
हमारी मातृशक्ति
भय से न छटपटाऍं।
उसकी अस्मत पर
ऑंच न आने पाए।
नववर्ष में
हम सुख-दुख के साथी
इस कदर बन जाएं,
यदि दुख हो तुमको
आसूं मेरी आँखों से आए।
नववर्ष में
उजालों का कारवाॅं ले
हम आगे बढ़ते जाएं।
नव संकल्पों से
नव प्रगति के सूर्य उगाऍं।

—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव,
अलवर(राजस्थान)

Language: Hindi
1 Like · 460 Views
Books from PRATIBHA ARYA (प्रतिभा आर्य )
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