नववर्ष पर मुझको उम्मीद थी
नववर्ष पर मुझको उम्मीद थी,
कि कुछ परिवर्तन होगा,
जैसे कि—————
गलतियां माफ होगी,
मेरी खैर पूछी जायेगी,
और जिनसे थी मेरी अनबन,
वो भी मुझको शुभकामनाएं देंगे।
नववर्ष पर मैं देख रहा था,
उनके आने की राह,
जिनसे मेरे अटूट रिश्तें हैं,
जिनसे मुझको बहुत प्यार है,
और मानता हूँ जिनको मैं,
अपना हमदर्द, हमराह,
अपने जिंदगी के सपनें,
वो लगा लेंगे मुझको सीने से।
लेकिन नववर्ष पर,
पूछा नहीं किसी ने मुझसे,
मेरा हाल कि मैं कैसा हूँ ,
नहीं दी मुझको किसी ने भी,
शुभकामनाएं और बधाई नववर्ष की।
क्या बदला है फिर नववर्ष पर,
वही चांद और वही सूरज है,
वही धरती और वही आकाश है,
वही सितारें और नजारें हैं,
वही अहम और वही वहम है,
वही दूरियां और कट्टरता है,
वही नफरत और घृणा है।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)