#नवयुग
🔥 #नवयुग 🔥
◆ बहुत सुखी हुआ करता था किसान। उसके दिन वसंत जैसे मधुर मदिर रसभीने और रातें हर्षित उल्लसित दीपावली जैसी सुखदायी हुआ करती थीं।
● फूलों की नियति झरकर बिखरना है और कांटे शाख से विलगकर भी अपनी प्रखरता नहीं छोड़ते।
◆ बहुधा सरकार किसान के द्वार पर आकर पुकारा करती, “धन दे दो माई-बाप ! ऋण चाहिए सरकार !” खेत-खलिहानों जैसे विशाल हृदय वाला किसान मात्र शब्दों से ही पसीजता और ऋण दे दिया करता। उत्सवप्रेमी देश में कभी भी लोकराज का मेला लगता तो नाचता-झूमता किसान सरकार को ऋणमुक्ति का उपहार बांटा करता था।
● विद्युजिह्व की विधवा सूर्पसमान तीखे नखों वाली सुंदरी हेमलता पति के हत्यारे अपने भाई रावण को मरघट तक खेंच ही लाई।
◆ किसान के सुख-ऐश्वर्य से डाह रखने वाले अनेकानेक ईर्ष्यालुजन आत्मघात किया करते थे। किसान को ऐसे कर्महीनों से बहुत चिढ़ थी।
● चिरप्यासी कुब्जा मंथरा से सीता मैया का सुख सहन नहीं हुआ।
◆ किसान की दानशीलता की चर्चा दसों दिशाओं में यों हुआ करती कि उसका एक नाम अन्नदाता ही विख्यात हो गया था उन दिनों।
● सुख और दुःख धूप व छाया के समान हैं। कभी धूप चुभा करती है और छाया स्नेहिल छुअन से लुभाती है। परंतु, विपरीत समय आने पर यह इक-दूजे का धर्म धारण करने में संकोच नहीं किया करती हैं।
◆ तब सच्चे अर्थों में इस धरती के समस्त जीवों में यदि कोई सुखी था तो वो किसान ही हुआ करता था।
● हे इन पंक्तियों के सुधि पाठक ! दिन रातों में ढल जाया करते हैं और रातें दिनों में निखरकर आती हैं। वर्ष शताब्दियों में बदल जाया करते हैं और शताब्दियां युगों में पलट जाती हैं।
◆ लिपेपुते चेहरे लिए परजीवी नचनिए किसान की ड्योढ़ी तक आया करते। धमाल मचाकर लौट जाया करते। एक दिन वे बोले, “रातें ढलती नहीं उन्हें ढकेलना पड़ता है। युग बदलते नहीं, युग पलटाए जाते हैं। समस्याएं सुलझती नहीं सुलझानी पड़ती हैं।” परन्तु, किसान के पास तो समस्या ही नहीं थी। और, अब तो उसके पास हल भी नहीं था। युग पलटाए तो कैसे?
● और, फिर एक दिन मोदी आया।
🙏
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२