नवभाषा निर्माण करै छै(कविता)
मृत्यु तल्प पर नान्ह आयु ओघराबै बोली ।
भाषा गाछसे बोली टेहु काटि रहल टोली !
ढाह दिअ अहिना गर्व के,ई ग्यानीक होली,
दियो मैथिलपुत्र दिनकर अशीष के गोली ।
एक ओर सीता बहीन,दोसर ओर सँ मा कहत !
एक ओर तों दुलरा,दोसर ओर भगवान बनत !
एक मनुख्ख योगतासँ जतय पुरस्कार नै पाबै छै
लोककेँ ठक फुसलाकें नवभाषा निर्माण करै छै
कोटि कोटि नमन,जे अंगिका महाकवि छैलाह !
अंगिका ब्रज्जिका के पुरान स्वरूप मिलौनै छैलाह,
तखने बनल मैथिली भाषा सबसँ सुनर हमर,
धन्य माटि के लाल रेणू ठीक गप्प लिखने छैलाह !
कोटि कोटि नमन भागलपुरक माटि महिमा गाबि!
इतिहास मे ऐना लकऽ हेराएल कहिकऽ ताकि !
वैह मनुख्ख बनि की हम किछु लोक संगे मिलि,
अपन सुनर मिठक्का पहचान बिसरि मिटाबि!
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य