नवतपा की लव स्टोरी (व्यंग्य)
नवतपा की लव स्टोरी
ऐ नवतपा मुझे इतना न सता
हर साल तू अपनी औकात न बता
हर हाल में मुझे चलने आता है
तू बार बार मुझे ही सताता है।
ऐ नवतपा……
मई में आता है जून में चला जाता है
बाकी महीनो में नजर नहीं आता है
सच बता तुझे भी कोई सताता है।
या कोई नही भाता है।
ऐ नवतपा……
जब तू गर्म हवा के साथ होते हो।
सब सर्द हवा की ओर होते है
ये सर्द गर्म की कोई मर्म भी है
क्या तुम ही हो जो अकेले में रोते हो।
ऐ नवतपा….
गुस्सा इतना क्यों करते हो
किसी पे इतना क्यों मरते हो
एक नही हो सकते तो
खुद को गर्म हवा में क्यों रखते हो।
ऐ नवतपा…..
सबका अलग-अलग तासिल होता है
ये इत्तेफाक से ही हासिल होता है
ये प्रेम रूपी मायाजाल का जंजाल है
ये जब भी गिरता है भूचाल बनकर गिरता है।
ऐ नवतपा…..
व्यंग्यकार
संतोष कुमार मिरी
शिक्षक जिला दुर्ग