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23 Dec 2021 · 1 min read

नवगीत

एक रचनाः
छाँव ढूँढती भरी दुपहरी

मीनारों से गठबंधन कर,
भरा सड़क ने भी पर्चा

बूढ़े बरगद ने पंचो से
बीच सभा यह बात कही।
जेसीबी के दंत विषैले
पीड़ा अब न जाये सही
टूट रहा जीवन से रिश्ता,
साँसे बस किरचा- किरचा

कंकर -पत्थर के नगरो ने,
सबको तेरह तीन किया।
गाँव गोट को अंदरखाने,
दाता से अब दीन किया।
जान बचाने से ज्यादा अब
लाश उठाने का खर्चा

खेत बिक रहे धीरे- धीरे,
जंगल क्वारंटीन हुए।
मधुमक्खी के छत्तों जैसे,
सारे टप्पर टीन हुए।
छाँव ढूँढती भरी दुपहरी
सूरज से करती चर्चा।

मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद।26-10-2021

Language: Hindi
Tag: गीत
4 Likes · 3 Comments · 384 Views
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