नवगीत
आखिर कब तक लज्जा ढोये
‘शब्दों पर पहरे हैं’ फिर भी
‘पंखुड़ियों पर गीत’
‘लिखने का कारण’ ‘अंधायुग’
है ‘मुर्दों का गाँव’
‘पल्लव’ ‘परिमल’ ‘कालजयी’ है
‘सात घरों का गाँव’
‘एक समय था’ ‘नई इमारत’
रची नया संगीत
‘चंद हसीनों की खुतूत’ पर
‘बुधुवा की बेटी’
‘उड़ने की मुद्रा में’ अब है
धूप कहीं लेटी
‘सिकहर से भिनसहरा’ छेड़े
नया तराना मीत
‘‘हरसिंगार कोई तो हो’
है उपवन का सौरभ
‘कागज का टुकड़ा’ पैसा है
जिस पर है नाचा नभ
‘हारी हुई लड़ाई लड़ते’
‘सत्यप्रेम’ के प्रीत
‘आखिर कब तक’ ‘लज्जा’ ढोये
‘गंगा का बेटा’
‘दिल्ली का दलाल’ है जब तक
आंगन में लेटा
‘प्रेत और छाया’ के घर में
पौरुष जाये जीत
कुछ ‘सन्यासी’ हों ‘कबीर’ लें
‘नारद की वीणा’
हर ‘हल्दी के छापे’ पढ़ लें
आदम की पीड़ा
उड़ ‘जहाज का पंछी’ गाये
गीत और नवगीत
मित्रो ! इस रचना में इन साहित्यकारों की पुस्तकों के नामों को समाहित किया गया है और पुस्तकों के नाम ‘……’ में दिये गये हैं. प्रयास और एक प्रयोग आपके समक्ष है….निर्णय आपका ….
नवगीतकार सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’- ‘परिमल’
गीतकार सुमित्रानंदन पंत- ‘पल्लव’
नाटककार पंडित लक्ष्मी नारायण मिश्र- ‘कालजयी’ , ‘संन्यासी’ , ‘नारद की वीणा’
साहित्यकार ठाकुर प्रसाद सिंह- ‘हारी हुई लड़ाई लड़ते’ , ‘सात घरों का गाँव’ , ‘कबीर’ ,
गीतकार पंडित रामेश्वर शुक्ल अंचल- ‘नई इमारत’
व्याकरणाचार्य पंडित कामता प्रसाद गुरु- ‘सत्यप्रेम’
अशोक गीते- ‘शब्दों पर पहरे हैं’ , ‘पंखुड़ियों पर गीत’
कवि रघुवीर सहाय- ‘लिखने का कारण’ , ‘एक समय था’
साहित्यकार धर्मवीर भारती- ‘अंधायुग’ , ‘मुर्दों का गाँव’
पाण्डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’- ‘चंद हसीनों के खुतूत’ , ‘बुधुवा की बेटी’ , ‘दिल्ली का दलाल’ , ‘गंगा का बेटा’
कथाकार पंडित इलाचंद जोशी- ‘लज्जा’ , ‘प्रेत और छाया’ , ‘जहाज का पंछी’
डा. माहेश्वर तिवारी- ‘हरसिंगार कोई तो हो’
डा. मधुकर अष्ठाना- ‘सिकहर से भिनसहरा’
अनिरुद्ध नीरव- ‘उड़ने की मुद्रा में’
अवनीश सिंह चौहान- ‘कागज का टुकड़ा’
बनवारीलाल गौड़- ‘आखिर कब तक’
अवध बिहारी श्रीवास्तव- ‘हल्दी के छापे’
साहित्यकारों के नाम बस अपनी सुविधा के क्रम में रखे गये हैं.कृपया वरिष्टता से न जोड़ें.
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ