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3 May 2020 · 1 min read

नवगीत

टंकी के शहरों में

*

खड़े हैं कटघरों में

फसलों के गाँव.

जोत चढ़ी रधिया की,

बुधई के नाँव.

*

कोट-पैंट पहने है

बदली की, धूप,

टंकी पे लटके हैं,

शहरों में कूप,

विधवा सी मरुथल में,

कीकर की छाँव.

*

तालों के पनघट हैं,

कूड़ों के ढेर,

जलकुम्भी नदियों के,

जुएँ रही हेर,

गेहूँ के खेतों में,

ईंटों के पाँव.

*

गाता न ठुमरी है,

पंछी का ठोर,

आठ बजे जगता है,

आंगन का भोर,

फागुन की गलियों में,

कौओं के काँव.

*

खोंइछा न पाता है,

लज्जा का फाँड़,

चीनी में उठँगी है,

गन्ने की खाँड़,

पछवाँ का जोर हुआ.

पुरवा के ठाँव.

*

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’

मेरठ

Language: Hindi
572 Views

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