नवगीत
नई सड़क से हटकर घर है
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नई सड़क से, हटकर घर है,
फिर छोटी पगडंडी है.
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बस से आना, ठीक रहेगा,
घर के ही वह, पास रुकेगी,
नई बनी है, राजकीय है,
कहीं न, मक्कड़जाल बुनेगी,
एक बड़ा सा पुल आयेगा,
पास दाल की मंडी है.
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पौधों की हर, अंग-भंगिमा
में, हँसती तरुणाई पगली,
आसमान की आभा ललकित,
हवा लिए शहनाई-डफली,
बरगद है, भूखंड कटे हैं,
गड़ी हरी सी झंडी है.
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लाल कनेरों के बँगलों पर,
किरणों के ललछौंहें मोती,
निगमायुक्त, नई सी कोठी,
बहती है गंगा की सोती,
एक अँगोछा भर जाड़ा है,
सुबह-सुबह की ठंडी है.
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है तो छोटा, किन्तु शहर यह,
अयुगल और विकास-परक है
आओगे तो, स्वयं देखकर,
स्वर्ग कहोगे, नहीं नरक है,
पौराणिकता का प्रमाण है,
चर्चित मन्दिर चंडी है.
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शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’.
मेरठ