नवगीत
कवि नहीं हूँ
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एक अदना आदमी हूँ
कवि नहीं हूँ
मैं गरीबी की गली की
गंदगी हूँ
आँसुओं का बोझ बोझिल
बंदगी हूँ
एक ढिबरी जल रही जो
रवि नहीं हूँ
नहीं मुझमें चाँद जैसी
चाँदनी है
एक झरने की तरह की
रागिनी है
स्वर्ग धरती को लगे वो
छवि नहीं हूँ
नहीं पावन श्लोक आयत
नय कहानी
एक बूढ़ी जिंदगी की
लय सयानी
मैं कहीं शुभ कर्म करता
हवि नहीं हूँ
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ