नवगीत
लगे किसान पिता
पकड़े हल की
मूँठ खुरदरी
लगे किसान पिता
मीसिरजी के कल का आटा
पचा न पाता पेट
कभी डबलरोटी से चसका
नहीं किया है भेंट
जाँता-लोढ़ा-सिलवट-बटुई
लगे पिसान पिता
विश्वग्राम है मड़ई टोला
विश्वविजय है गाँव
सम्प्रभुता की आंगनबाड़ी
है पीपल की छाँव
कालिदास के मेघदूत सा
लगे पिछान पिता
दर्द पीठ का असहनीय तो
लगे कमर की चोट
धोती-कुरता-गमछी पहिरन
पास न फटका कोट
बड़ा चँदोआ खेमा कोई
लगे वितान पिता
बीड़ी-माचिस ही की तीली
पाकिट का श्रृंगार
कुछ हथफेर करज की गठरी
मँगनी मगन उधार
उड़े कबूतर का अड्डा कुछ
लगे मिलान पिता
शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ