नर-नारी
नर-नारी
// दिनेश एल० “जैहिंद”
कर द्विभाजित अपनी ही रूह को !
माटी का पुतला एक बनाया उसने !!
प्रेमफाँस में जीने-मरने की खातिर !
जान फूँककर धरा पे पठाया रबने !!
अपनी ही रूह के दो टुकड़े करके !
ईश्वर भी भर-भर आँसू रोया होगा !!
विरह मिलन प्रेम घृणा दया ममता !
दु:ख सुख का वो बीज बोया होगा !!
स्त्री का पुरुष कभी पुरुष की स्त्री !
नारी का नर कभी नर की नारी है !!
बिछड़ी रूह अपनी रूह को खोजे !
रूह को अपनी ही अर्ध्या प्यारी है !!
अर्धनारीश्वर ईश्वर की अंशिका सदा !
चिर काल से ईश्वर की वामांगी यहाँ !!
राधा खोजे मोहन सीता खोजे रामा !
लैला खोजे धरा पे मजनूँ जहाँ-तहाँ !!
यूँ नहीं तड़पती विपरीत लिंगी यहाँ !
स्वयं विलोम की सर्वदा होती पात्रा !!
अपूर्णता ने पूर्णता को जब तलाशा !
पूर्ण हुई त्योंहि उसकी जीवन-यात्रा !!
इश्क नर-नारी का, मिलन साँसों का !
रुझान मीरा कृष्ण का मेल रूहों का !
प्यासी रूह कसक दो आत्माओं का !
सुकूं तनमन का घेरा चार बाँहों का !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
13. 02. 2019