नर- नारी (आज और कल)
नर और नारी (आज और कल)
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क्या वजूद है नर के बिन नारी का
एक गाड़ी के दो पहिए जैसे
गर नर नहीं होता तो न चलता
संसार की ये सारी गतिविधियाँ
रूक जाती सृष्टि की सर्जना
प्रकृति पुरूष का मेल चला आ रहा
युगों – युगों और अनादिकाल से
याद करिए कालिदास विधोत्तमा को
जिसने जन्म दिया कविकुल
हाथ नारि का नर को बनाने में
कैसी भावनाएँ निखरती थी शवरी में
जो चख – चख बेर खिलाया करती
उस मर्यादा पुरूषोत्तम पुरूष को
अहिल्या और राम की कहानी भी
मुझसे आपसे अनसुनी नहीं है
याद करो देवासुर संग्राम को तुम
जब नर दशरथ की रानी ही बनी
कैकई सारथि उस युद्ध में
बडी पराक्रमी थी रथ हाँकने में
नतमस्तक हो गया धीर पुरूष
यह संसार अकल्पित ही हमेशा रहेगा
एक दूजे के बिना ही सदा ही
दोनों जीवन आधार है एक दूजे के
जीवन के राग -रंग शून्य नर के बिना
मारी भी कहाँ पूर्णता की धारी
डॉ मधु त्रिवेदी