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2 Jan 2022 · 1 min read

नर्म नर्म एहसास

डा ० अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

नर्म नर्म एहसास

रुई सा नरम नरम होता हैं
एहसास नारी मन का ||

हवा भी चले हल्की हल्की
तो उडड्न छू होते हैं ||

एहसास नारी मन का ||

मुझको इनका कुछ भान नहीं था
युं तो मैं अन्जान नहीं था ||

एहसास नारी मन का ||

अभ्यस्त नहीं था जीवन के शुरुआती
पल में भूल करा करता था ||

एहसास नारी मन का ||

देता था झक्झोर तुनक के
मुझको न था कुछ भी ज्ञान ||

एहसास नारी मन का ||

धीरे धीरे पकता आया जैसे
कोई आम जैसे कोई आम ||

एहसास नारी मन का ||

कोमलता ने डारा डेरा
नरम नरम सा दिल था मेरा ||

एहसास नारी मन का ||

दिल के द्वार उगा इक अंकुर
नाम दिया था जिसे इश्क का ||

एहसास नारी मन का ||

उसने सब कुछ समझाया प्रीत जगी
फिर आँख लडी फिर जागा प्रेम आपार ||

एहसास नारी मन का ||

तब मैं जाना ओढा अम्बर भूमि बिछौना
रग रग राग बहा अन्जाने, प्रेम का, मनमाना ||

एहसास नारी मन का ||

तब ही मैने पहचाना ,
एहसास नारी मन का
नरम नरम सा कोमल कोमल
जैसे हो को गीत सुबह का ||

एहसास नारी मन का ||

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