‘नर्क के द्वार’ (कृपाण घनाक्षरी)
नरक के तीन द्वार,
कहे यही वेद सार,
तज तीनों ही की रार,
ज्ञानियों का है विचार।
लोभ-क्रोध अरु काम,
रख इन पे लगाम,
तभी जाये हरि धाम,
विष्णु रथ हो सवार।
तज मोह का तू बंध
सुमर देवकी नंद
जगत आनंद कंद,
वही जीव करतार।
क्रोध-लोभ हैं विकार,
शम-शम मार-मार,
इच्छा शक्ति धार-धार,
खुल जाए मोक्ष द्वार।।
-गोदाम्बरी नेगी
(हरिद्वार उत्तराखंड)