नया साल : एक नज़र
#नया_साल : #एक_नजर
@दिनेश एल० “जैहिंद”
हर बार ऐसा होता है
एक साल जाता है,
दूसरा साल आता है
तुम्हीं दिल पर हाथ रखकर
कहो – इसमें नया क्या होता है ?
बस, हम तुम झूठे कहते हैं
कि नया साल-नया साल !
वही दिन,
साल, महीने
वही सातों दिन,
वही बारह महीने
वही तीन सौ पैसठ का साल
तुम्हीं दिल पर हाथ रखकर
कहो – इसमें नया क्या होता है ?
बस, हम तुम झूठे कहते हैं
कि नया साल-नया साल !
मैंने जब
होश संभाला
तब से देखा है –
ये दिन और रात !
कड़वा सच है कि
सिर्फ होता है वही दिन
और वही रात !
वही भोर और वही साँझ
तुम्हीं दिल पर हाथ रखकर
कहो – इसमें नया क्या होता है ?
बस, हम तुम झूठे कहते हैं
कि नया साल-नया साल !
रोज सुबह
सूरज निकलता है
साँझ होते डूब जाता है
दिन की भीड़ चिढ़ाती है
गिद्ध-सी नजरें मुझे घुरती हैं
शेर-से पंजे मुझे दबोचते हैं
रात की कालिमा मुझे डराती है !
चोर-सी आँखें मुझे ढूढ़ती हैं
रात के लुटेरे मिलकर मुझे लूटते हैं !
तुम्हीं दिल पर हाथ रखकर
कहो – इसमें नया क्या होता है ?
बस, हम तुम झूठे कहते हैं
कि नया साल-नया साल !
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दिनेश एल० “जैहिंद”
29. 11. 2018