नया शहर, अंजान रास्ते
आया हूँ एक नए शहर कई अरसे बाद
सब बदला-बदला सा है
आज कल अपने नहीं हैं पास,
जिन दोस्तों से मिलना होता था हर वार,
आज वो बैठे हैं किसी शहर दूर दराज़
थोड़ा डरा सा हूँ,
थोड़ा सहमा सा हूँ,
थोड़ा व्याकुल सा हूँ,
क्योंकि ख़ुद मुझे ही नहीं पता
क्या लगेगा मेरे दिल को ख़ास
बस इतना पता है कि किसी कि कमी खल रही है बार बार
यूँ तो रोज़ की ज़िंदगी की भागदौड़ में
अपने आप को भुला देने की कोशिश कर रहा हूँ
लेकिन नहीं बुझा पा रहा हूँ अपने दिल से
अजीब से ख़ाली पन का एहसास |