नया मानव को होता दिख रहा है कुछ न कुछ हर दिन।
ग़ज़ल
1222/1222/1222/1222
नया मानव को होता दिख रहा है कुछ न कुछ हर दिन।
जहां में घट रहा अच्छा-बुरा है कुछ न कुछ हर दिन।1
ज़रूरत भर को मालिक दे रहा है ख़ुद ब ख़ुद सबको,
यहाॅं इंसान फिर भी मांगता है कुछ न कुछ हर दिन।2
यहाॅं हर शख़्स नफ़रत बांटता है आज दुनियां में,
मगर बस प्यार मां ने ही दिया है कुछ न कुछ हर दिन।3
सतत महनत से ही मिलता है फल जो चाहते हैं सब,
वही पाया है मंजिल जो चला है कुछ न कुछ हर दिन।4
मुझे प्रेमी ने दी थी जो कली इक प्यार में तोहफा,
वो तोहफा फूल बनकर खिल रहा है कुछ न कुछ हर दिन।5
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी